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मुख्तार अंसारी की मौत को लेकर अफजाल के दावे पर बीएचयू की मुहर

वाराणसी     मुख्तार अंसारी की मौत के बाद उनके बड़े भाई अफजाल अंसारी ने दावा किया कि शव को कब्र में इस तरह से दफनाया गया है कि बीस साल बाद भी उसे निकालकर परीक्षण होगा तो जहर की पुष्टि हो जाएगी। अफजाल के दावे पर बीएचयू फारेंसिंक विभाग ने भी मुहर लगाई है। फोरेंसिंक विभाग के अनुसार मृत्यु के सौ साल बाद भी राख और हड्डियों से जहर की पुष्टि हो सकती है। हड्डी के एक सेंमी के सैंपल या किसी पात्र में एकत्र की गईं अस्थियों (राख) की एक निर्धारित प्रक्रिया से जांच के आधार पर पता लगाया जा सकता है कि अमुक को जहर दिया गया था या नहीं। जांच की यह सुविधा आईएमएस बीएचयू के फॉरेंसिक विभाग की टॉक्सीकोलॉजी लैब में भी उपलब्ध है। इस लैब में हड्डी और राख की जांच से मौत के रहस्यों से पर्दा उठाए जाते हैं।
मुख्तार अंसारी की मौत के बाद इस जांच की चर्चा शुरू हुई है। भाई अफजाल अंसारी ने आरोप लगाया है कि मुख्तार को जहर देकर मारा गया। उनका यह भी कहना है कि कब्र में दफन मुख्तार की डेड बॉडी की 20 साल बाद भी जांच से सच्चाई सामने आ जाएगी। माडर्न मेडिकल साइंस में अब जहर से मौत के संदेह की सूक्ष्म जांच संभव है। आईएमएस बीएचयू के फॉरेंसिक विभाग के डॉक्टरों के अनुसार जहर हैवी मेटल (भारी धातु) श्रेणी में आता है। उसमें आर्सेनिक, मर्करी, लेड, थेलियम जैसे तत्व होते हैं। वे हड्डी, बाल और नाखून में धीरे-धीरे जगह बना लेते हैं। ऐसे में किसी की मौत के बाद उस जहर की गुणवत्ता और उसकी मात्रा की पुष्टि संभव है। फॉरेसिंक विभाग के प्रो. सुरेंद्र पांडेय ने बताया कि जहर का तत्व शरीर में सौ साल से अधिक समय तक रहता है। इसकी पहचान बाल, हड्डी और नाखून से की जा सकती है। फिर शव दफना दिया गया हो, उसका अंतिम संस्कार हुआ हो या जहर देकर फेंक दिया गया हो, यदि हड्डी का एक सैंपल और अस्थियां सुरक्षित हैं तो उससे मौत की वजह पता लगा सकते हैं।
AZMI DESK

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