जैसलमेर बस हादसा: अपनों को खोने वालों में मातम, शेरगढ़ का एक परिवार ही खत्म

जैसलमेर-जोधपुर राष्ट्रीय राजमार्ग पर मंगलवार (14 अक्टूबर) दोपहर हुए बस हादसे ने पूरे राजस्थान को झकझोर कर रख दिया. एक निजी ट्रेवल्स की बस में अचानक भीषण आग लग गई और कुछ ही पलों में बस आग का गोला बन गई. आग इतनी भयावह थी कि कई यात्रियों को बाहर निकलने का मौका तक नहीं मिला. प्रशासन और स्थानीय लोगों ने राहत व बचाव कार्य में पूरी ताकत झोंक दी, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी.
इस हादसे में करीब 21 लोगों की मौत हो गई, जबकि 16 गंभीर घायलों को जोधपुर रेफर किया गया है. महात्मा गांधी अस्पताल में इनका इलाज चल रहा है. अस्पताल के बाहर परिजनों का दर्द देखने लायक था, कोई अपने बेटे का नाम पुकार रहा था, कोई अपने परिवार की सलामती के लिए भगवान से प्रार्थना कर रहा था.
एक ही परिवार के पांच सदस्यों की मौत
शेरगढ़ के लोहारान गांव का प्रजापत परिवार इस हादसे में पूरी तरह खत्म हो गया. परिवार के मुखिया, उनकी पत्नी और तीन छोटे बच्चे दीपावली की छुट्टियां मनाने गांव लौट रहे थे. उनके भांजे दिनेश कुमार ने बताया कि दीपावली की छुट्टियां शुरू हुई थीं, इसलिए वे गांव लौट रहे थे. हादसे में सब चले गए. अब सिर्फ बूढ़ी मां बची है. वह रातभर मोर्चरी के बाहर बैठी है. हमने विधायक बाबूसिंह राठौड़ को कई बार फोन किया, लेकिन वे एक बार भी नहीं आए. कोई सुनवाई नहीं हो रही. यह बयान स्थानीय प्रशासन और जनप्रतिनिधियों की संवेदनहीनता पर भी सवाल खड़ा करता है.
आधा शरीर जला, लेकिन उम्मीद जिंदा
इसी हादसे में शेरगढ़ क्षेत्र का लक्ष्मण, जो जैसलमेर में एक होटल में काम करता था, अपने गांव लौट रहा था. हादसे में वह 50% से ज्यादा झुलस गया, परंतु अभी भी जीवित है और इलाज चल रहा है. परिवार को जब सूचना मिली तो पूरा गांव जोधपुर पहुंच गया. हर एम्बुलेंस के पहुंचने पर सब लक्ष्मण का चेहरा खोज रहे थे.
परिवार का कहना है कि हमें डर था कि लक्ष्मण भी नहीं बचेगा, लेकिन भगवान की कृपा से वह जिंदा है. मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा रात में अस्पताल आए और उन्होंने कहा कि लक्ष्मण सहित सभी घायलों को बेहतर इलाज दिया जाएगा.
राज्य सरकार की निगरानी में चल रहा इलाज
मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा, चिकित्सा मंत्री गजेंद्र सिंह खींवसर और स्थानीय प्रशासन लगातार अस्पताल में राहत व्यवस्था की समीक्षा कर रहे हैं. डॉक्टरों की विशेष टीम घायलों का इलाज कर रही है, वहीं मृतकों के परिजनों को सरकारी सहायता देने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है.
यह हादसा दीपावली के पहले राजस्थान के लिए दर्द और आंसुओं का पर्व बन गया है. आग की लपटों में सिर्फ बस नहीं जली, बल्कि कई परिवारों की खुशियां भी राख हो गईं.
देखने वालों की भी आंखें हो जा रही हैं नम
बस में बम्बरों की ढाणी निवासी पीर मोहम्मद अपने परिवार के साथ यात्रा कर रहे थे. परिवार के छह सदस्य बस में मौजूद थे. हादसे के दौरान दो की मौके पर ही जलकर मौत हो गई, जबकि चार लोगों को गंभीर हालत में जोधपुर के महात्मा गांधी अस्पताल लाया गया. दुर्भाग्य से बुधवार (15 अक्टूबर) को इलाज के दौरान पीर मोहम्मद के छोटे बेटे यूनुस की भी मौत हो गई। अस्पताल परिसर में परिजनों का रो-रोकर बुरा हाल है. महिलाएं और बच्चे अस्पताल के वेटिंग रूम में बैठे हैं, जबकि बाकी परिजन टूट चुके हैं. किसी की आंखों से आंसू नहीं रुक रहे तो किसी के शब्द गले में अटक जा रहे हैं. माहौल इतना भावुक है कि देखने वालों की भी आंखें नम हो जा रही हैं.
परिजनों का आरोप है कि जैसलमेर इतना बड़ा जिला है, लेकिन यहां एक बड़ा अस्पताल तक नहीं है. इतने गंभीर घायलों को जोधपुर लाने में तीन घंटे लग गए. रास्ते में ही एक मरीज ने दम तोड़ दिया. अगर जैसलमेर में पर्याप्त चिकित्सा सुविधाएं होती, तो शायद कुछ जिंदगियां बच सकती थीं.
लोगों ने मांग की है कि जैसलमेर में शीघ्र ही एक आधुनिक और सुसज्जित सरकारी अस्पताल की स्थापना की जाए, ताकि भविष्य में ऐसे हादसों में घायलों को तत्काल उपचार मिल सके और अमूल्य जानें न जाएं.