आजमगढ़: करंट से लाइनमैन की मौत, बिजली विभाग की घोर लापरवाही बेनकाबसरकारी लापरवाही या हत्या? शटडाउन खेल ने ली लाइनमैन की जान
मुबारकपुर में संविदा लाइनमैन की मौत, एसडीओ-जेई निलंबित, एसएसओ बर्खास्त
सरकारी लापरवाही या हत्या? शटडाउन खेल ने ली लाइनमैन की जान मुबारकपुर में संविदा लाइनमैन की मौत, एसडीओ-जेई निलंबित, एसएसओ बर्खास्त

आजमगढ़। मुबारकपुर क्षेत्र के देवरिया गांव में मंगलवार की रात एक संविदा लाइनमैन की दर्दनाक मौत ने बिजली विभाग की लापरवाही और सरकार की संवेदनहीनता को कटघरे में खड़ा कर दिया है।
48 वर्षीय रामदुलारे गुप्ता, जो उपकेंद्र मुबारकपुर में संविदा लाइनमैन के रूप में कार्यरत थे, मंगलवार रात लगभग साढ़े आठ बजे देवली खालसा गांव में ट्रांसफार्मर का तार ठीक करने पहुंचे। विभागीय आदेश पर उन्होंने शटडाउन लेकर मरम्मत शुरू की थी। लेकिन अचानक बिजली सप्लाई चालू कर दी गई और वह करंट की चपेट में आकर नीचे गिर पड़े। गंभीर हालत में उन्हें निजी अस्पताल ले जाया गया जहां डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया।
उपकेंद्र पर तैनात संविदा एसएसओ संजय यादव ने सुरक्षा नियमों को पूरी तरह ताक पर रख दिया।
बिना सुरक्षा किट, बिना चेकलिस्ट और बिना现场 सत्यापन के सिर्फ फोन पर शटडाउन दिया गया।
यही विभागीय अपराध रामदुलारे गुप्ता की मौत का कारण बना।
जिम्मेदार अधिकारी दोषी
अधीक्षण अभियंता द्वितीय दिग्विजय सिंह और क्षेत्रीय अधिशासी अभियंता ने जांच की।
जांच में उपखंड अधिकारी (एसडीओ) मुबारकपुर अभिषेक राय और अवर अभियंता (जेई) अमन वर्मा को दोषी पाया गया।
दोनों अधिकारियों को तत्काल निलंबित कर मुख्य अभियंता वितरण द्वितीय गोरखपुर कार्यालय से संबद्ध किया गया।
संविदा एसएसओ संजय यादव को सेवा से बर्खास्त कर दिया गया।
अपराध या महज औपचारिकता?
स्थानीय लोगों का आरोप है कि यह कोई दुर्घटना नहीं, बल्कि बिजली विभाग का आपराधिक कृत्य है।
विभाग लगातार संविदा लाइनमैन से जान जोखिम में डालकर काम करवाता है लेकिन न सुरक्षा उपकरण देता है, न बीमा, न ही स्थायी नौकरी।
मौत के बाद सिर्फ निलंबन और बर्खास्तगी की दिखावटी कार्रवाई कर दी जाती है, जबकि आपराधिक मुकदमा दर्ज होना चाहिए।
देवरिया और आस-पास के ग्रामीणों ने कहा कि विभाग की लापरवाही के कारण यह “हत्या” है।
“अगर कोई आम आदमी जानबूझकर ऐसी लापरवाही करता तो उस पर हत्या का मुकदमा दर्ज होता, फिर अफसरों को छूट क्यों?”
परिजनों की मांग है कि मृतक परिवार को एक सदस्य को स्थायी नौकरी और 50 लाख रुपये मुआवजा मिले।
सवाल सरकार से
आखिर संविदा कर्मचारियों को बिना सुरक्षा उपकरण के खतरनाक काम क्यों कराया जाता है?
क्यों हर मौत के बाद सरकार और विभाग सिर्फ निलंबन का ड्रामा करके मामले को दबा देते हैं?
क्या इन मौतों के लिए उच्च अधिकारियों और जिम्मेदार राजनेताओं पर हत्या का केस दर्ज होगा?
यह कोई हादसा नहीं बल्कि विभाग की आपराधिक लापरवाही है। सरकार अगर वास्तव में जिम्मेदार है तो सिर्फ निलंबन नहीं बल्कि हत्या के मामले में एफआईआर दर्ज कर दोषियों को जेल भेजे।