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नीतीश का बेदाग चेहरा, फ्री बिजली, महिलाओं को 10 हजार… वो फैक्टर, जिनसे NDA ने बिहार में उड़ा दिया गर्दा!


बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों में एनडीए की सुनामी दिखाई दी, जिसने महागठबंधन के सभी दांवों को बुरी तरह पछाड़ दिया. एनडीए ने 202 सीटें जीतकर तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाले महागठबंधन को धूल चटा दी. आखिर क्या थे वो फैक्टर, जिन्होंने बीजेपी और नीतीश कुमार को इतनी बड़ी जीत दिलाई और तेजस्वी के मुख्यमंत्री बनने का सपना चकनाचूर कर दिया. आइए जानते हैं-  

बीजेपी ने 101 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 89 सीटों पर जीत हासिल की. वहीं जेडीयू ने भी 101 सीटों पर चुनाव लड़कर 85 सीटें जीतीं. जेडीयू की सीटें पिछले चुनाव की तुलना में करीब डबल हो गई हैं. साल 2020 के चुनाव में जेडीयू महज 43 सीटों पर पहुंच गई थी. अगर महागठबंधन की बात करें तो 2020 के चुनाव में 75 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनने वाली आरजेडी इस बार महज 25 सीटों पर सिमट गई. आरजेडी ने तेजस्वी के चेहरे पर 143 सीटों पर चुनाव लड़ा था. इसके अलावा कांग्रेस 61 सीटों पर लड़कर महज छह सीटें जीत पाई. बीते 15 सालों में ये कांग्रेस और आरजेडी का सबसे खराब प्रदर्शन है. 

हालांकि आरजेडी के लिए राहत की बात सिर्फ ये है कि उसे इस चुनाव में भी सबसे ज्यादा वोट मिले हैं. आरजेडी को 1.15 करोड़ वोटर्स ने वोट किया है, जबकि बीजेपी को एक करोड़ लोगों ने वोट दिया और जेडीयू को 97 लाख वोट मिले. वहीं कांग्रेस को 44 लाख लोगों ने समर्थन दिया है. बिहार का नतीजा इस बार पूरी तरह निर्णायक रहा, जहां सत्तारूढ़ गठबंधन को 243 में से 202 सीटें मिली हैं, वहीं विपक्ष महागठबंधन को सिर्फ 35 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा. 
 
NDA की जीत के फैक्टर

1- महिलाओं के खाते में 10 हजार रुपये

नीतीश कुमार जब से बिहार के मुख्यमंत्री बने हैं, उन्होंने महिलाओं को जेडीयू का एक बड़ा जनाधार तैयार करने पर फोकस किया. पहले उन्होंने 10वीं पास करने वाली छात्राओं को साइकिल और सहायता राशि दी. उसके बाद शराबबंदी करके उनका भरोसा कमाया. इतना ही नहीं, जब विपक्ष ने शराबबंदी को लेकर सवाल उठाए और नीतीश को लगने लगा कि इसका असर कम होने लगा है तो उन्होंने महिलाओं के आरक्षण पर फोकस किया. सरकारी नौकरियों से लेकर पुलिस की भर्ती तक में उन्होंने महिलाओं को 35-35 फीसदी आरक्षण लागू कराया. अब चुनाव से ऐन पहले नीतीश सरकार ने मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना के तहत 1.13 करोड़ महिलाओं के खाते में 10-10 हजार रुपये ट्रांसफर किए, जोकि एक बड़ा गेमचेंजर साबित हुआ. 

2- जंगलराज और कट्टा सरकार

बिहार में चुनाव प्रचार की कमान संभालने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब भी रैलियों को संबोधित किया, जनता को पुराने ‘जंगलराज’ और ‘कट्टा सरकार’ की याद दिलाई. पीएम मोदी ने लालू यादव और राबड़ी देवी के समय बिहार की कानून व्यवस्था को लेकर आरजेडी और तेजस्वी यादव पर कड़ा प्रहार किया. उनकी इस चेतावनी को फर्स्ट टाइम वोटर, महिलाओं और शहरी वोटर्स ने गंभीरता से लिया. प्रधानमंत्री ने ‘जंगलराज’ शब्द दोहराया, जिसके बाद सुरक्षा एक बड़ा मुद्दा बना और सुशासन बाबू के रूप में नीतीश कुमार की पहचान और मजबूत हुई. 
 
3- फ्री बिजली योजना
नीतीश कुमार की सरकार बिहार में 125 यूनिट तक फ्री बिजली भी मुहैया करा रही है. मुख्यमंत्री विद्युत उपभोक्ता सहायता योजना के तहत राज्य के 1.67 करोड़ परिवारों को इसका लाभ मिलेगा. इस योजना के लिए किसी तरह के आवेदन की जरूरत नहीं है. इसका ऐलान भी अगस्त महीने में किया गया था. इस फ्री योजना ने जाति, वर्ग और धर्म की दीवारों को तोड़कर वोटर्स को नीतीश सरकार के पक्ष में मतदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
 
4- नीतीश कुमार की बेदाग छवि
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार करीब 20 सालों से सत्ता में बैठे हुए हैं, लेकिन उनकी छवि पूरी तरह बेदाग है. उनके ऊपर न तो सत्ता पक्ष और न ही विपक्ष के किसी नेता ने कभी भ्रष्टाचार का कीचड़ नहीं उछाला. वह कई बार एनडीए से महागठबंधन में गए और वहां से एनडीए में वापसी की, लेकिन उनकी छवि अभी पूरी तरह साफ-बेदाग है और बिहार की जनता उन्हें ‘सुशासन बाबू’ के रूप में देखती है, इसका सबूत नतीजे दे रहे हैं. 

5- विकास
कभी बिहार को पिछड़ा राज्य कहा जाता था, जिसका विकास का पहिया कीचड़ में धंसा हुआ था. हालांकि नीतीश के सत्ता में आने के बाद राज्य में कई सड़कें, हाईवे, रेलवे ब्रिज, ओवरब्रिज समेत कई तरह के विकास कार्य हुए. उनके कार्य करने की गति की वजह से उन्हें ‘विकास पुरुष’ का तमगा भी मिला. उनके सत्ता में आने के बाद कानून-व्यवस्था भी बेहतर हुई, जिसकी वजह से विकास कार्यों में तेजी आ सकी. 

AZMI DESK

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