2025 Vs 2020: RJD को भयंकर नुकसान, JDU को 100% सीटों का फायदा, जानें बिहार चुनाव का पूरा लेखा-जोखा

बिहार विधानसभा चुनाव में एक ओर एनडीए की प्रचंड जीत हुई है तो वहीं दूसरी ओर महागठबंधन को तगड़ा नुकसान. इस बार जहां नीतीश की जदयू को 100 फीसदी सीटों का फायदा हुआ है तो वहीं तेजस्वी के नेतृत्व में राजद की ऐतिहासिक हार हुई है. ऐसे में ये समझना जरूरी हो जाता है कि महागठबंधन की तरफ से सीएम फेस घोषित तेजस्वी के नेतृत्व में राजद की इतनी दुर्गित कैसे हुई और उम्मीदों से परे नीतीश की जदयू इतनी सीटें कैसे जीत गई.
राजद की बात करें तो इस बार हार की एक प्रमुख वजह 52 यादव उम्मीदवारों को टिकट देना साबित हुआ. यह फैसला न केवल जातिवादी छवि को मजबूत कर गया, बल्कि गैर-यादव वोट बैंक को पार्टी से दूर कर दिया. बिहार में यादवों की 14 फीसदी आबादी है, जो आरजेडी का कोर वोट बैंक है, लेकिन 52 यादवों को टिकट देने से जनता को कहीं न कहीं यादव राज की गंध आने लगी, जिसके चलते अगड़े और अति पिछड़े महागठबंधन से दूर हो गए. हैरानी की बात तो ये है कि 52 यादव को टिकट देने के बावजूद पार्टी कुल 25 सीटें ही जीत पाई है.
राजद ने सबसे ज्यादा यादवों को टिकट दिया
बता दें कि राजद ने कुल 144 सीटों पर उम्मीदवार उतारे, जिनमें 52 यादव थे जो कुल प्रत्याशियों का लगभग 36 फीसदी था. महागठबंधन में सीट शेयरिंग के तहत आरजेडी को 143 सीटें मिलीं थीं. तेजस्वी यादव की रणनीति में सबसे बड़ी चूक अपने सहयोगियों कांग्रेस, वाम दलों और छोटी पार्टियों के साथ बराबर भाव न रखना साबित हुआ. महागठबंधन को सीट शेयरिंग के विवादों ने भी काफी नुकसान पहुंचाया.
महागठबंधन पर हावी दिखे तेजस्वी
कांग्रेस ने गारंटी मेनिफेस्टो पर जोर दिया, जबकि तेजस्वी यादव ने नौकरी को प्राथमिकता दी, जो सभी सहयोगियों को चुभा. इतना ही नहीं तेजस्वी ने महागठबंधन के घोषणापत्र का नाम भी तेजस्वी प्रण रखकर सबको पीछे कर दिया. तेजस्वी ने प्रचार में भी अपने सहयोगियों को बैकसीट पर रखा. इसके अलावा रैलियों में राहुल गांधी से ज्यादा तेजस्वी यादव की तस्वीरें छाई रहीं.
तेजस्वी के नेतृत्व में राजद ने लड़े 3 चुनाव
बता दें कि तेजस्वी के नेतृत्व में राजद 3 चुनाव लड़ चुकी है. 2015, 2020 और 2025. साल 2015 में आरजेडी और नीतीश साथ थे तो इस गठबंधन को जीत मिली थी. आरजेडी 80 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी. 2020 में आरजेडी ने कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ा और नीतीश कुमार बीजेपी के साथ आ गए थे. इस चुनाव में भी आरजेडी 75 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. 2025 में राजद 2010 के जैसे तरह बुरी तरह से हारी.
नीतीश का दमदार कमबैक
2020 में 45 सीटों तक सिमटने के कारण नीतीश कुमार की राजनीतिक पूंजी कम हो गई थी. उनकी मुख्यमंत्री के रूप में स्वीकृति रेटिंग 2020 के 37 फीसदी से गिरकर 16 फीसदी से 25 प्रतिशत के बीच रह गई थी. हालांकि इस बार बीजेपी ने जेडीयू संग मिलकर 101-101 सीटों पर बराबर सीटों का समझौता किया, लेकिन राजनीतिक गलियारों में नीतीश को छोटे भाई के रूप में देखा जा रहा था. कारण ये था कि मोदी ब्रांड वोट खींचेगा, न कि नीतीश कुमार.
सभी जातियों में लोकप्रिय
नीतीश को समर्थन देने वाले कारणों की बात करें तो उसमें कई चीजें शामिल है. सामाजिक सद्भाव और जातिगत संतुलन. नीतीश की सबसे बड़ी ताकत कई जातियों और धर्मों को साथ लेकर चलने की क्षमता है. बिहार में भले ही उनकी कुर्मी जाति की आबादी लगभग 3 फीसदी हो, लेकिन वो उन जातियों के बीच भी लोकप्रिय हैं जो पारंपरिक रूप से किसी एक पार्टी के प्रति प्रतिबद्ध नहीं मानी जाती हैं. सवर्ण, कुशवाहा, पासवान, मुसहर और मल्लाह इसके अलावा उनकी पकड़ उन मुस्लिम मतदाताओं के बीच भी है जो आमतौर पर बीजेपी के खिलाफ माने जाते हैं.
महिला मतदाताओं का साथ
इन सबके अलावा नीतीश कुमार ने महिला मतदाताओं के बीच भी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई है. मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना (MMRY) जैसी कल्याणकारी पहलों के माध्यम से महिला मतदाताओं ने उनके नेतृत्व के लिए एक स्थिर बल के रूप में काम किया है, जिससे उन्हें बड़ा समर्थन मिला है. साथ ही बता दें कि 2020 के उलट जहां जेडीयू कैडर में भ्रम था तो वहीं इस बार पार्टी की संगठनात्मक शक्ति अधिक एक्टिव दिखाई दी.
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