Chronic Lung Disease: क्रॉनिक लंग डिजीज वाले कितने हफ्तों के लिए छोड़ें दिल्ली? जानें डॉक्टर की सलाह

Delhi Air Pollution: दिवाली के बाद दिल्ली की हवा काफी दूषित हो चुकी है. अभी थोड़ी लोगों को राहत मिली है, क्योंकि अधिकतर हिस्सों में AQI 200 से नीचे आ चुका है. लेकिन यह भी खतरे से कम नहीं है. खासकर वे लोग जो क्रॉनिक लंग डिजीज से गुजर रहे हैं, उनके लिए तो कतई भी नहीं सही है यह. एक्सपर्ट के अनुसार, यह स्थिति न सिर्फ बच्चों और बुजुर्गों के लिए क्रॉनिक लंग डिजीज, अस्थमा, ब्रॉन्काइटिस और ILD के मरीजों के लिए बेहद खतरनाक है. चलिए आपको बताते हैं कि क्रॉनिक लंग डिजीज से परेशान लोगों को कब तक छोड़ देनी चाहिए दिल्ली.
प्रदूषण का असर फेफड़ों पर कैसे पड़ता है?
AIIMS के पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. रणदीप गुलेरिया बताते हैं कि दिल्ली की हवा में मौजूद सूक्ष्म कण (PM2.5 और PM10) फेफड़ों के अंदर तक पहुंचकर वहां सूजन पैदा करते हैं. “जिन लोगों को पहले से अस्थमा या COPD की दिक्कत है, उनके फेफड़े इन कणों के संपर्क में आते ही और कमजोर हो जाते हैं. इससे सांस फूलना, खांसी और सीने में जकड़न जैसे लक्षण तेजी से बढ़ जाते हैं.” एक्सपर्ट बताते हैं कि जिन मरीजों को क्रॉनिक लंग डिजीज है, उन्हें नवंबर-दिसंबर के दौरान कम से कम 2 से 3 हफ्तों के लिए प्रदूषित इलाकों से दूर रहना चाहिए. who के अनुसार, हवा में मौजूद काफी छोटे कण जैसे PM2.5 और PM10 बहुत सूक्ष्म होते हैं. ये इतने हल्के होते हैं कि नाक या सांस की नली से निकलकर फेफड़ों के अंदर तक पहुंच जाते हैं. वहां जाकर ये कण सूजन और ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस पैदा करते हैं, जिससे फेफड़ों की कोशिकाएं कमजोर होने लगती हैं.
अगर दिल्ली छोड़ना संभव न हो तो क्या करें?
हर किसी के लिए शहर छोड़ना आसान नहीं होता. ऐसे में डॉक्टर कुछ जरूरी सुझाव देते हैं.
- घर में HEPA फिल्टर वाला एयर प्यूरिफायर इस्तेमाल करें.
- सुबह और शाम खुले में व्यायाम करने से बचें, क्योंकि उस समय प्रदूषण ज्यादा होता है.
- बाहर निकलते वक्त N95 या N99 मास्क लगाएं.
- भाप और गर्म पानी को डेली की दिनचर्या में शामिल करें.
- घर के अंदर स्नेक प्लांट या पीस लिली जैसे पौधे रखें, जो हवा को साफ करते हैं.
दिल्ली में हवा की क्वालिटी खराब होने की संभावना है, क्योंकि पराली जलाने और सर्द हवाओं के कारण प्रदूषक नीचे जमने लगते हैं. डॉक्टरों का कहना है कि AQI 200 से ऊपर का स्तर लगातार रहने पर भी क्रॉनिक मरीजों की फेफड़ों की क्षमता घटने लगती है, और सीने में इंफेक्शन का खतरा बढ़ जाता है.
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Disclaimer: यह जानकारी रिसर्च स्टडीज और विशेषज्ञों की राय पर आधारित है. इसे मेडिकल सलाह का विकल्प न मानें. किसी भी नई गतिविधि या व्यायाम को अपनाने से पहले अपने डॉक्टर या संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.
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