EXPLAINED: बिहार में 24 मुस्लिम सीटों से हार-जीत तय, फिर मुसलमानों को टिकट क्यों नहीं, कैसे 73 सालों में नदारद हुए ‘इस्लामिक कैंडिडेट्स’?

बिहार की राजनीति में मुसलमानों का नाम अक्सर ‘निर्णायक वोट बैंक’ के रूप में लिया जाता है, लेकिन आंकड़े कुछ और ही बयान करते हैं. राज्य की कुल आबादी में 17.7% हिस्सेदारी होने के बावजूद विधानसभा में मुसलमानों को जगह न के बराबर मिल रही. 1985 में रिकॉर्ड 34 मुस्लिम विधायक चुने गए थे, जो 2020 में महज 19 ही बचे.
तो आइए ABP एक्सप्लेनर में समझते हैं कि कैसे बिहार की राजनीति में मुस्लिम कैंडिडेट्स ग्राफ गिरता गया, चुनाव जीतने के लिए मुस्लिम वोट कितने जरूरी और आगामी चुनाव में मुसलमानों की स्थिति क्या…
सवाल 1- बिहार में मुसलमानों की आबादी कितनी है और यह राजनीति पर क्या असर डालती है?
जवाब- 2023 के बिहार कास्ट सर्वे के मुताबिक, बिहार की कुल आबादी 13.07 करोड़ है. इसमें मुसलमान 17.7% यानी 2.31 करोड़ हैं. राजनीति में मुसलमान बहुत बड़ा रोल निभाते हैं. बिहार में 243 विधानसभा सीटें हैं, जिनमें से 87 सीटों पर मुसलमानों की आबादी 20% से ज्यादा है और 47 सीटों पर 15-20% है. खासकर किशनगंज, पूर्णिया, कटिहार और अररिया जैसे सीमांचल इलाकों में 40-70% मुसलमान हैं. यहां 24 सीटें हैं और यहीं से चुनाव में जीत-हार तय होती है.
कुल मिलाकर 60 सीटों पर मुसलमान निर्णायक वोटर हैं. राजद का MY (मुस्लिम-यादव) फॉर्मूला इसी पर चलता है. सीमांचल में मुस्लिम बहुल इलाके हैं, जहां AIMIM जैसी पार्टियां मजबूत हो रही हैं. लेकिन मुसलमानों को टिकट कम मिलते हैं, इसलिए वोट बैंक तो है, लेकिन सत्ता में हिस्सा नहीं है.
सवाल 2- 1952 से 2020 तक विधानसभा में मुस्लिम विधायकों की संख्या कैसे कम होती गई?
जवाब- 1952 से 2020 तक बिहार में 17 विधानसभा चुनाव हुए. इनमें कुल 390 मुस्लिम विधायक चुने गए. 1985 में सबसे ज्यादा 34 मुस्लिम विधायक चुने गए. 1990 के बाद गिरावट शुरू हुई, लेकिन 2000 में राजद के समय थोड़ा सुधार आया. 2020 में 19 मुस्लिम विधायक बने, जिनमें राजद (8), AIMIM (5) और कांग्रेस (4) शामिल रहे.
| साल | मुस्लिम विधायक | कुल सीटें |
प्रतिशत (%)
|
| 1952 | 23 | 323 | 7.0 |
| 1957 | 22 | 318 | 6.9 |
| 1962 | 20 | 318 | 6.3 |
| 1967 | 25 | 318 | 7.9 |
| 1969 | 20 | 318 | 6.3 |
| 1972 | 26 | 318 | 8.2 |
| 1977 | 22 | 324 | 6.8 |
| 1980 | 28 | 324 | 8.6 |
| 1985 | 34 | 324 | 10.5 |
| 1990 | 19 | 324 | 5.9 |
| 1995 | 23 | 324 | 7.1 |
| 2000 | 30 | 324 | 9.3 |
| 2005 (फरवरी) | 24 | 243 | 9.9 |
| 2005 (अक्टूबर) | 16 | 243 | 6.6 |
| 2010 | 19 | 243 | 7.8 |
| 2015 | 24 | 243 | 9.9 |
| 2020 | 19 | 243 | 7.8 |
सवाल 3- बीते 73 सालों में मुस्लिम प्रतिनिधित्व क्यों घट गया?
जवाब- पॉलिटिकल एक्सपर्ट्स के मुताबिक, मुस्लिम प्रतिनिधित्व घटने की 5 बड़ी वजहें हैं…
1. टिकट की राजनीति: राजनीतिक पार्टियां मुस्लिम उम्मीदवार सिर्फ मुस्लिम-बहुल सीटों पर उतारती है. मिश्रित सीटों पर हिंदू वोटरों को खुश रखने के लिए मुस्लिम को टिकट नहीं देतीं. 2020 में जदयू ने मिश्रित सीटों पर 11 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन सब हार गए. सेक्युलर पार्टियां मुसलमानों को टिकट से वंचित रखती हैं, खासकर मगध जैसे इलाकों में.
2. हिंदू ध्रुवीकरण का डर: बीजेपी की हिंदुत्व रणनीति ने पार्टियों को डराया कि मुस्लिम उम्मीदवार से हिंदू वोट एक तरफ चले जाएंगे. NDA में शामिल पार्टियां जदयू और LJP मुस्लिम टिकट काटती हैं. 1990 के बाद मंडल कमीशन के बाद जाति फोकस बढ़ा, लेकिन 2005 (अक्टूबर) NDA चुनाव में मुस्लिम विधायक 16 पर गिरे. 2020 में NDA सरकार में पहली बार एक भी मुस्लिम MLA नहीं था. बीजेपी ने 74 सीटें जीतीं, लेकिन मुस्लिम 0.
3. गठबंधन की उलझनें और वोट-कटाई: 2015 में महागठबंधन ने सब समीकरण से 24 मुस्लिम विधायक भेजे, लेकिन 2020 में AIMIM ने 5 सीटें जीतीं और बाकी जगहों पर वोट काट लिए. 85% मुसलमान पसमांदा (अंसारी और कुरैशी) हैं, लेकिन टिकट ऊपरी जाति मुसलमानों को मिलता है. यानी सिर्फ 7 मुस्लिम जातियां टिकट पाती हैं. गठबंधन बदलाव और वोट स्प्लिट ने 2010-2020 में मुस्लिम प्रतिनिधित्व घटा दिया.
4. ऐतिहासिक मोहभंग: 1989 भागलपुर दंगे में 1000 से ज्यादा मुस्लिमों की मौत हुई थी, जिसके बाद कांग्रेस से मोहभंग हो गया. मुस्लिम आबादी राजद की ओर गई, लेकिन लालू-नीतीश दौर में MY समीकरण सिर्फ वोट लेता रहा, विधायक नहीं.
5. क्षेत्रीय असंतुलन: सीमांचल की 24 सीटों पर मुस्लिम विधायक तो ठीक हैं, लेकिन मगध की 26 सीटों पर 2010 के बाद से एक भी मुस्लिम विधायक नहीं बना. पटना, गया और नालंदा जैसी विधानसभा सीटों पर भी सालों से मुस्लिम विधायक नहीं रहा.
सवाल 4- 2025 चुनाव में पार्टियों ने कितने मुस्लिम उम्मीदवार उतारे?
जवाब- 2025 का चुनाव 6 नवंबर से 11 नवंबर तक होंगे और नतीजे 14 नवंबर को आएंगे. इस बार सिर्फ 36 मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में उतरे हैं, जबकि आबादी के हिसाब से 44 होने चाहिए थे.
NDA ने 243 विधानसभा सीटों में से सिर्फ 5 मुस्लिम उम्मीदवारों को उतारा है. जदयू 101 सीटों के लिए उम्मीवादों में सिर्फ 4 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिए. बीजेपी और HAM ने एक भी मुस्लिम प्रत्याशी को टिकट नहीं दिया. LJP(RV) ने एक मुस्लिम प्रत्याशी उतारा है. वहीं महागठबंधन ने 243 में से 30 मुस्लिम कैंडिडेट्स उतारे हैं. इनमें राजद के 18, कांग्रेस के 10 और CPI(ML) के 2 मुस्लिम प्रत्याशी शामिल हैं. AIMIM ने 25 और जन सुराज ने 21 मुस्लिम प्रत्याशियों को टिकट दिया.
सवाल 5- 2025 चुनाव में मुसलमानों के वोट कैसे पड़ सकते हैं?
जवाब- पॉलिटिकल एक्सपर्ट्स का मानना है कि इस बार ज्यादातर मुस्लिम वोट्स महागठबंधन को जाएंगे. लेकिन AIMIM और जन सुराज वोट काट सकते हैं. जन सुराज ने 40 मुस्लिम उम्मीदवार देने का वादा भी किया है. हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के हैरी ब्लेयर की किताब माइनॉरिटी इलेक्टोरल पॉलिटिक्स में लिखा है, ‘मुसलमान लोकल डायनामिक्स से वोट देते हैं.’ यानी अगर ध्रुवीकरण बढ़ा तो AIMIM जैसी छोटी मुस्लिम पार्टियों को फायदा हो सकता है.



