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उत्तराखंड: अधिकारियों ने सरकारी पैसों पर रखे निजी कुक, 34 महीने तक चला ‘किचन कनेक्शन’


उत्तराखंड वन विकास निगम (UFD) एक बार फिर विवादों में घिर गया है. इस बार मामला वित्तीय अनियमितता और नियमों की खुली अवहेलना से जुड़ा है. ताजा खुलासे में सामने आया है कि निगम के 46 अधिकारियों ने बिना शासन की अनुमति के अपने घरों में निजी कुक (रसोइया) रख लिए और उनकी तनख्वाह सरकारी खाते से दी जाती रही. यह सिलसिला पूरे 34 महीने तक चलता रहा, जिससे निगम के बजट पर करीब ढाई करोड़ रुपये का बोझ पड़ा.

सूत्रों के अनुसार, जब ऑडिट टीम ने इन अधिकारियों से नियुक्तियों का ब्योरा मांगा, तब यह पूरा मामला सामने आया. जांच में पाया गया कि 36 प्रभागीय लौंगिक अधिकारी, 4 क्षेत्रीय प्रबंधक, 4 प्रशासनिक अधिकारी, 1 मुख्य लेखाधिकारी और 1 ईपीएफ लेखाधिकारी ने अपने घरों में आउटसोर्सिंग के जरिए कुक नियुक्त किए थे. प्रत्येक कुक को हर महीने 17,000 रुपये मानदेय दिया जा रहा था. कुल मिलाकर हर महीने करीब 8 लाख रुपये का भुगतान निगम के सरकारी फंड से किया जा रहा था.

निगम कर रहा नियमों की खुली अनदेखी

दिलचस्प यह है कि मई 2022 में निगम ने नई सेवा नियमावली लागू की थी, जिसमें कुक रखने का प्रावधान समाप्त कर दिया गया था. इसके बावजूद अधिकारियों ने नियमों की अनदेखी करते हुए अपने निजी कुकों की सेवाएं जारी रखीं. ऑडिट रिपोर्ट के मुताबिक, अप्रैल 2025 तक ये भुगतान नियमित रूप से होते रहे. जब वित्तीय जांच का दबाव बढ़ा, तभी जाकर इन सेवाओं को समाप्त किया गया.

अधिकारी रिश्तेदारों के नाम पर कर रहे थे भुगतान?

ऑडिट के दौरान यह भी सामने आया कि कुछ अधिकारियों ने अपने ही रिश्तेदारों के नाम पर कुक की नियुक्ति दिखाकर वेतन का भुगतान कराया. इस खुलासे ने निगम के अंदर जवाबदेही और निगरानी व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं.

कर्मचारी संघ ने जताई नाराजगी

वन निगम कर्मचारी संघ के महामंत्री प्रेम सिंह चौहान और संयुक्त मंत्री कीर्ति सिंह नेगी ने इसे निगम की कार्यसंस्कृति पर कलंक बताया. उनका कहना है कि यह सिर्फ वित्तीय अनियमितता नहीं, बल्कि सिस्टम में जड़ जमा चुकी गैर-जवाबदेही का उदाहरण है.

सरकार ने दिए जांच के आदेश

वन मंत्री सुबोध उनियाल ने कहा कि मामले को गंभीरता से लिया गया है और दोषी पाए जाने पर संबंधित अधिकारियों से वित्तीय रिकवरी की कार्रवाई की जाएगी. वहीं, प्रिंसिपल सेक्रेट्री फॉरेस्ट आर.के. सुधांशु ने बताया कि इस विषय पर निगम के एमडी से बात की जाएगी और विस्तृत जांच के बाद आवश्यक कदम उठाए जाएंगे.

इस बीच, जब मीडिया ने वन निगम की एमडी नीना ग्रेवाल से संपर्क करने की कोशिश की तो उन्होंने फोन नहीं उठाया. अब बड़ा सवाल यह है कि तीन साल तक यह भ्रष्टाचार निगम की नजरों से कैसे बचा रहा और आखिर इतनी देर तक किसी ने इसकी जांच की मांग क्यों नहीं की है.

AZMI DESK

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